विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान .
"विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान " विद्यालयीन शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत भारत का सुप्रसिद्ध शिक्षा संगठन है जिससे सम्बद्ध 1100 से अधिक सरस्वती शिशु /विद्या मंदिर छ.ग. प्रांत में संचालित हो रहे है। छ.ग. में सचालित विद्यालयों के शैक्षिक मार्गदर्शन का कार्य "सरस्वती शिक्षा संस्थान छत्तीसगढ़ करता है।
सरस्वती शिशु/विद्या मंदिरों का संचालन व्यावसायिक स्वरूप में न होकर समाज के प्रतिष्ठित नागरिकों की स्थानीय समिति द्वारा देश और समाज हित में निस्वार्थ भाव से किया जाता है।
विद्या भारती ने निरंतर शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से भारत केन्द्रित समाजोन्मुखी शिक्षा पद्धति विकसित की है। हमें हर्ष है कि भारत सरकार द्वारा स्वीकृत नई शिक्षा पद्धति 2020 में हमारी शिक्षा पद्धति की अनेक विशेषताओं का समावेश किया गया है।
सरस्वती शिशु / विद्या मंदिर में प्रचलित शिक्षा पद्धति में विभिन्न शैक्षिक विषयों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तो प्रदान की ही जाती है, विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास हेतु अनेक गतिविधियाँ भी की जाती हैं। शारीरिक, योग, संगीत, संस्कृत एवं नैतिक तथा आध्यात्मिक विषयों की शिक्षा सरस्वती शिशु / विद्या मंदिरों की विशेषता है।
आज के आधुनिक परिवेश में जब कुटुम्ब व्यवस्था क्षीण हो रही है, परिवार छोटे हो रहे हैं, परिवार और समाज से मिलने वाले संस्कारों की प्रक्रियायें कमजोर हो रही हैं, फलस्वरूप व्यक्ति अपने आप में सिमटता जा रहा है। स्व का बोध, पर्यावरण संरक्षण,कुटुंब प्रबोधन,सामाजिक समरसता,नागरिक कर्तव्य जैसे विषयों के प्रति जागरूकता, समाज के दीन-दुखी. अभावग्रस्त अपने बान्धवों के प्रति संवेदनशीलता जगाने का कार्य हमारी शिक्षा पद्धति करती है।
विद्या भारती की यह स्पष्ट धरणा है कि विद्यालयीन शिक्षा "मातृभाषा" में दी जानी चाहिये । मातृभाषा में शिक्षा के कारण विभिन्न विषयों के कठिन पाठ्यक्रम को समझने में आसानी होती है, जबकि किसी विदेशी भाषा में पठन-पाठन से विद्यार्थी की बहुत सारी ऊर्जा भाषा को समझने में ही लग जाती है एवं उसका स्वाभाविक विकास अवरूद्ध हो जाता है।
एक विशिष्ट एवं समग्र शिक्षा पद्धति के कारण प्रत्येक सरस्वती शिशु मंदिर की सूची में ऐसे अनेक गौरवशाली पूर्व छात्र हैं जो भारतीय भाषा में शिक्षा प्राप्त कर उत्कृष्ट परीक्षा परिणाम को अर्जित कर आज समाज में प्रतिष्ठित स्थानों पर आसीन हैं तथा अपने सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।
आज जबकि विश्व में भारत की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित हो रही है, हमें बड़ी संख्या में ऐसे युवाओं को गढ़ना है जो हिन्दुत्वनिष्ठ हों एवं राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत हों, जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए अपने देश के समाज जीवन को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत बनाने में सक्षम हों। "सरस्वती शिशु / विद्या मंदिरों ने ऐसे युवाओं को गढ़ने का दायित्व अपने कंधों पर लिया है।" हम निरंतर अपने ध्येय पथ पर बढ़ रहे हैं। इस श्रेष्ठ कार्य में परमेश्वर रूपी समाज का आशीर्वाद हमें निरंतर प्राप्त हो, यह विनम्र प्रार्थना है